क्रियात्मक शोध के चरण

क्रियात्मक शोध के चरण

किसी भी अनुसन्धान का सबसे पहला सोपान वह समस्या होती है जिसके सम्बन्ध में अनुसन्धान किया जाना है; क्योंकि समस्या के अभाव में समाधान किसका किया जाए? समस्या के समाधान के लिए आवश्यकता है-अनुसन्धान की। अत: अनुसन्धानकर्ता को सबसे पहले उस समस्या को समझना चाहिए, जिसे वह हल करना चाहता है; क्योंकि समाधान हेतु की गई समस्त क्रियाएँ भी समस्या से सम्बन्धित ही होंगी। जब शिक्षक या अनुसन्धानकर्ता को अपनी समस्या का ही पता नहीं होगा तो उसके द्वारा किए गए समस्त प्रयास निरर्थक ही होंगे; परन्तु उन्होंने जो भी प्रयत्नों की रूपरेखा बनाई, उसमें मौखिक अभिव्यक्ति के अतिरिक्त लिखित अभिव्यक्ति को कहीं स्थान ही नहीं था। इसका आशय स्पष्ट था कि उनकी दृष्टि में उच्चारण एवं वर्तनी दोनों एक ही हैं। यथार्थतः, दोनों एक न होकर अलग-अलग हैं। यद्यपि दोनों परस्पर सम्बद्ध अवश्य हैं; परन्तु एक नहीं। उच्चारण का सम्बन्ध मौखिक अभिव्यक्ति से है तो वर्तनी का सम्बन्ध लिखित अभिव्यक्ति से। अतः किसी समस्या का समाधान खोजने से पूर्व उस समस्या को भली-भाँति समझा जाना चाहिए।

द्वितीय सोपान– समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem)

इसके अन्तर्गत-आप जिस समस्या पर कार्य कर रहे हैं, उसको स्पष्ट कीजिए कि वास्तव में उस समस्या से आपका तात्पर्य क्या है; उदाहरण के लिए-वर्तनी वाली समस्या को ही बताइए कि अधिकतर लड़के लिखने में अशुद्धियाँ करते हैं। वे ‘बीड़ी’ का ‘बिड़ी’, ‘फूल’ का ‘फुल’ लिखते हैं।

तृतीय सोपान– समस्या सीमांकन (Delimiting the Problem)

इसके अन्तर्गत-समस्या के उस क्षेत्र को बताइए जहाँ आप कार्य करेंगे; उदाहरणार्थ-वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ तो प्रत्येक पाठशाला के छात्र कर सकते हैं; परन्तु आप सभी पाठशालाओं के सभी छात्रों की अशुद्धियों का संशोधन कर सकें-यह कम ही सम्भव है। अत: आपको अपनी समस्या के समाधान हेतु अपनी पाठशाला को चुनना पड़ेगा। अपनी पाठशाला में भी यदि बहुत-सी कक्षाएँ हैं तो यह सम्भव नहीं कि आप सभी कक्षाओं में सभी छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर कर सकें। ऐसी स्थिति में आपको अपनी कक्षा या कुछ सीमित कक्षाएँ ही लेनी पड़ेंगी और इस सोपान के अन्तर्गत उस पाठशाला एवं कक्षा का उल्लेख करना होगा, जिसमें आप अपना अनुसन्धान कार्य करेंगे!

चतुर्थ सोपान– समस्या के सम्भावित कारणों का पता लगाना तथा कारणों का विश्लेषण

इस सोपान के अन्तर्गत उन कारणों पर विचार कीजिए जो वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों मूल कारण हैं; उदाहरण के लिए निम्न कारण हो सकते हैं-